भगवद् संदेश तुलसी तपोवन गौशाला संस्थापक- “परम पूज्य पुराण मनीषी” आचार्य श्री कौशिक जी महाराज

05~जून~2019🌞
🌞वार~बुधवार🌞
🌞पक्ष~शुक्ल🌞
🌞तिथि~द्वितीया🌞

मन का मुकाबला कैसे करें
और
कैसे गुरू कृपा के पात्र बने..?

एक शख्स सुबह सवेरे उठा साफ़ कपड़े पहने और सत्संग घर की तरफ चल दिया ताकि सतसंग का आनंद मान सके, रास्ते में ठोकर खाकर गिर पड़ा कपड़े कीचड़ से सन गए वापस घर आया कपड़े बदलकर वापस सत्संग घर की तरफ रवाना हुआ फिर ठीक उसी जगह ठोकर खा कर गिर पड़ा और वापस घर आकर कपड़े बदले फिर सत्संग घर की तरफ रवाना हो गया जब तीसरी बार उस जगह पर पहुंचा तो क्या देखता है की एक शख्स चिराग हाथ में लिए खड़ा है और उसे अपने पीछे पीछे चलने को कह रहा है इस तरह वो शख्स उसे सत्संग घर के दरवाज़े तक ले आया पहले वाले शख्स ने उससे कहा आप भी अंदर आकर सतसंग सुन ले लेकिन वो शख्स चिराग हाथ में थामे खड़ा रहा और सत्संग घर में दाखिल नही हुआ दो तीन बार इनकार करने पर उसने पूछा आप अंदर क्यों नही आ रहे है …?
दुसरे वाले शख्स ने जवाब दिया “इसलिए क्योंकि मैं काल हूँ, ये सुनकर पहले वाले शख्स की हैरत का ठिकाना न रहा। काल ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा मैं ही था जिसने आपको ज़मीन पर गिराया था जब आपने घर जाकर कपड़े बदले और दुबारा सत्संग घर की तरफ रवाना हुए तो सतगुरु ने आपके सारे गुनाह बख्श दिए जब मैंने आपको दूसरी बार गिराया और आपने घर जाकर फिर कपड़े बदले और फिर दुबारा जाने लगे तो सतगुरु ने आपके पूरे परिवार के गुनाह बख्श दिए !
मैं डर गया की अगर अबकी बार मैंने आपको गिराया और आप फिर कपड़े बदलकर चले गए तो कहीं ऐसा न हो वह आपके सारे गांव के लोगो के गुनाह बख्श दे इसलिए मैं यहाँ तक आपको खुद पहुंचाने आया हूँ
अब हम देखे कि उस शख्स ने दो बार गिरने के बाद भी हिम्मत नहीं हारी और तीसरी बार फिर पहुँच गया और एक हम जीव हैं यदि हमारे घर पर कोई मेहमान आ जाए या हमें कोई काम आ जाए तो उसके लिए हम सत्संग छोड़ देते हैं, भजन जाप छोड़ देते हैं। क्यों….???
क्योंकि हम जीव अपने सतगुरु से ज्यादा दुनियावी चीजों और रिश्तेदारों से ज्यादा प्यार करते हैं। उनसे ज्यादा मोह हैं। इसके विपरीत वह शख्स दो बार कीचड़ में गिरने के बाद भी तीसरी बार फिर घर जाकर कपड़े बदलकर सत्संग घर चला गया। क्यों…???
क्योंकि उसे अपने दिल में सतगुरू के लिए बहुत प्यार था। वह किसी कीमत पर भी अपनी बंदगीं का नियम टूटने नहीं देना चाहता था इसीलिए काल ने स्वयं उस शख्स को मंजिल तक पहुँचाया, जिसने कि उसे दो बार कीचड़ में गिराया और मालिक की बंदगी में रूकावट डाल रहा था, बाधा पहुँचा रहा था !

इसी तरह हम जीव भी जब हम भजन सिमरन पर बैठे तब हमारा मन चाहे कितनी ही चालाकी करे या कितना ही बाधित करे, हमें हार नहीं माननी चाहिए और मन का डट कर मुकाबला करना चाहिए।
एक न एक दिन हमारा मन स्वयं हमें भजन सिमरन के लिए उठायेगा और उसमें रस भी लेगा।
बस हमें भी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए और न ही किसी काम के लिए भजन सिमरन में ढील देनी हैं। वह मालिक, सतगुरु आप ही हमारे काम सिद्ध और सफल करेगा।
इसीलिए हमें भी मन से हार नहीं माननी चाहिए और निरंतर अभ्यास करते रहना चाहिए ..

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here