वाहन गरुण पर सवार ब्रम्हाण्ड भ्रमण के दौरान भगवान अच्युत ने जिस परमपवित्र पुराण का उपदेश गरुण को दिया, वही गरुण पुराण के नाम से विख्यात हुआ। इस पवित्र पुराण के उपसंहार में श्री हरि ने गरुण को संबोधित करते हुए कहा कि हे वैनतेय! कृमि , भस्म अथवा विष्ठा ही इस शरीर की परिणति है।
जो, मनुष्य शरीर प्राप्त करके भी, धर्माचरण नहीं करता हैवह हाथ में दीपक रखते हुए भी महाभयंकर अंधकूप में गिरता है। मनुष्य जन्म, प्राणियों को बहुत बड़े पुण्यों के बाद ही प्राप्त होता है। जो जीव, इस योनि को पाकर धर्म का आचरण करता है, उसे परम गति की प्राप्ति होती है।
धर्म को व्यर्थ मानने वाला प्राणी, दुःखपूर्ण जन्ममरण को प्राप्त करता है।
उन्होंने आगे कहा कि हे खगेश ! सैकड़ों बार विभिन्न योनियों में जन्म लेने के बाद प्राणी को मनुष्य योनि प्राप्त होती है और जो मनुष्य होकर, धर्म का पालन करता है, वह उस धर्म मार्ग से ही और धर्म की कृपा से ही अमरत्व को प्राप्त कर लेता है।
आर.के.शुक्ला