मजदूरों का पलायन मजबूर करता है सोचने को …?

देश के कुछ शहरों मे ही लाखों मजदूरो के पलायन ने ये सिध्ध कर दिया है कि स्वतंत्रता के पश्चात अब तक औद्योगिकरन एवं उससे सम्बन्धित नौकरिया केवल बड़े शहरों तक सीमित होकर रह गयी हैं. हरेक जिले मे हाहाकार मच जाता है जब उनके यहाँ से मजदूरो का पलायन होता है. अपने मंडला जिले को ही ले लें इस कोरोना संकटकाल में अब तक करीब तीस हजार मजदूर वापस आ चुके हैं, होली के समय मे भी हजारों मजदूर वापस आ गये थे यानी करीब पचास हजार मजदूरो का पलायन केवल अपने जिले से (आई. टी. सेक्टर मे शिक्षित जो वर्ग है अभी उसे इस पलायन में नही जोडा है) प्रत्येक साल हो रहा है.
स्वाभाविक है अगर इस पलायन को रोकना है तो इस औद्योगिकरन एवं सेवाअॊ का जोकि अभी बड़े बड़े शहरों तक सीमित है का विकेन्द्रीकरण करना होगा. चीन का माल पूरे देश मे छाया हुआ है जो देश की अर्थव्यवस्था एवं व्यापार को तहस नहस कर रहा है. हमे चीनी माल से मुकाबला करना है. हमारे पास पर्याप्त श्रम है, पर्याप्त पैसा के साथ साथ बुद्धि कुशलता भी है, तो हम क्यो नही वो सब माल अपने यहाँ बना सकते जो चीन से आ रहा है. बस आवश्यकता है बुद्धिमत्ता पूर्वक विकेन्द्रीकरण की. प्रत्येक जिला इस औधोयोगिकरन एवं सेवाओं से जुड़े जिससे श्रमिकों एवं आई. टी.सेक्टर की नौकरिया एवं सेवाएं उस जिले से पलायन करने वाले हजारों लोगों को अपने जिले मे ही प्राप्त हो सके.

सुनील अग्रवाल. मंडला

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