‘बछिया के ताऊ साबित हो जाते हैं,राहुल’


समय और परिस्थितियां बदलते वक्त नहीं लगता.कहते हैं ‘समय की चक्की धीमा पीसती है,लेकिन महीन पीसती है.आज देश के राजनीतिक हल्के में जो उठा पटक मची हुई है,वह उपरोक्त कथन की प्रमाणिकता को सत्य साबित कर रही है.जब सत्ता में थे,तो आँखों पर चर्बी चढ़ी हुई थी.जब जनता ने सत्ता से बेदख़ल कर दिया,तो आँखों में सरसों फूलने लगी.परिणामस्वरूप अनर्गल प्रलाप होने लगा.हर बार लगता है,कि राहुल गाँधी कोई दूर की कौड़ी लेकर आये गए,लेकिन हर बार बछिया के ताऊ साबित हो जाते हैं.भारत-चीन सीमा विवाद आज का नहीं है.सीमा विवाद किसलिये है,वह बिना अध्ययन के नहीं समझा जा सकता,और ना ही किसी ऐसे व्यक्ति को समझाया जा सकता है,जिसके आँखों का पानी ढल गया हो.कल के पहले तक,काँग्रेस की ओर से केवल एक ही परिवार के लोग भारत-चीन सीमा विवाद पर प्रलाप कर रहे थे.किन्तु सीडब्ल्यूसी की बैठक के बाद,राहुल के अहंकारी व्यंग्य बाणों से घायल,काँग्रेस के कुछ प्रमुख नेताओं ने वीडियो बनाकर सोशल मीडिया के माध्यम से प्रधानमंत्री से वही सवाल पूछा है,जो पिछले कई दिनों से परिवार पूछ रहा था.प्रधानमंत्री का पहले ही बयान आया था,कि भारतीय सीमा में कोई भी घुसपैठ या अतिक्रमण नहीं हुआ है.यही बात रक्षामंत्री और गृहमंत्री ने भी कही.सेनाध्यक्ष का वक्तव्य भी आया,कि देश की सीमायें पूर्ण रूप से सुरक्षित हैं.लेकिन,इनमें से किसी की भी बात पर काँग्रेस,विशेषकर परिवार के सदस्यों को विश्वास नहीं हो रहा.हो सकता,कि उपरोक्त संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों के शब्दों में कुछ अंतर हो,किन्तु आशय तो समझ आता है,कि वे क्या बोल रहे हैं.क्या,कहना चाहते हैं.काँग्रेस को यह समझना चाहिए,कि वो विपक्ष में है.यह बात राहुल गाँधी को भी गाँठ बांध लेनी चाहिए,कि वर्तमान में प्रधानमंत्री पद पर आसीन व्यक्ति भारत का प्रतिनिधित्व कर रहा है.वह उनके परिवार के रहमो करम पर आश्रित नहीं है,जैसा पूर्व में होता आया था.अब प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति जैसे संवैधानिक पदों पर आसीन लोग देश के लिए समर्पित हैं,काँग्रेस के लिए,या परिवार के लिए नहीं.डोकलाम विवाद के समय काँग्रेस का,जो चेहरा देश के सामने आया था,उसने बहुतों की आँखें खोल दी थीं.उसके बाद अब जो खुलासे हो रहे हैं,वे निश्चित तौर काँग्रेस पार्टी की राजनीतिक रेल को पटरी से उतार देंगे.इसकी भरपाई करने में पार्टी को बहुत वक्त लगेगा.भरपायी हो भी पाएगी या नहीं,यह कहना भी मुश्किल है.क्योंकि,काँग्रेस के पास वर्तमान में न तो इंदिरा गाँधी जैसा नेतृत्व है,और ना ही सजंय गाँधी जैसा मेहनती डिक्टेटर.इतिहास गवाह है,कि अगर सजंय गाँधी न होते,तो इंदिरा गाँधी की राजनीतिक वापसी नहीं हो पाती.कहते हैं सीखने की कोई उम्र नहीं होती,किन्तु यह उनके लिए है,जिनमें सीखने का ज़ज्बा हो.जब व्यक्ति अहंकार में डूबा हुआ हो,तो सिखाने वाला व्यक्ति,कितनी ही विद्वता क्यों न रखता हो,वह नहीं सिखा पायेगा.फिर,यह कथन गलत साबित हो जाएगा,कि सीखने की उम्र नहीं होती,क्योंकि,अहंकारी के लिए उम्र नहीं पूरा जीवन भी कम पड़ जायेगा.लेकिन,वह सीख नहीं पायेगा.

राकेश झा

सम्पादक

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