एक वेदना है जो आप सभी के सामने रखना चाहता हूं विगत कुछ दिनों पहले कोरोना काल के चलते लॉक डाउन की वजह से सावधानी को मद्देनजर रखते हुए सोशल डिस्टेंसिंग को लेकर प्रशासन द्वारा फतवा जारी हुआ जिसमें समस्त ट्रैक्टर वालों ने अपने व्यापार में अंकुश लगाकर अपने-अपने ट्रैक्टर घरों पर खड़े कर दिए धीरे-धीरे समय बीतता गया और लगभग 4 से 5 महीने बीत चुके हैं यह सभी छोटे ट्रैक्टर वाले अपने घरों से कोई कर्ज लेकर कोई मदद लेकर किस्त पटा रहा है और अब बरदास्त की सीमा लगभग समाप्त होने जा रही है। कोई ट्रैक्टर वाला शौक से चोरी नहीं करना चाहता रेत चोरी करके बेंचो या ठेकेदारों से खरीद कर पैसा 300 से 400 500 बस इतना ही बचा पाता है। यह एक मजबूरी है चूंकि मंडला में बाहर से आए बंदूकधारी ठेकेदारों द्वारा पूरी रेत खदानों में कब्जा कर लिया जाता है और मनमाने रेटों पर रेत बेची जाती है, फिलहाल जो स्थिति निर्मित हुई है उसमें भी बाहर से आए कुछ बंदूकधारी ठेकेदारों ने कुछ खदानों पर कब्जा कर रखा है, प्रतीत होता है मानो कुछ दिनों में फिर से संवेदनशीलता और अपराध बढ़ सकते हैं क्योंकी ट्रैक्टर वालों को रॉयल्टी नहीं मिल रही केवल बड़ी गाड़ियों को रॉयल्टी मिल रही है, जिससे ट्रैक्टर वालों में आक्रोश का माहौल निर्मित होने की आशंका है, और वह रेत मण्डला से बाहर जा रही है। मंडला में शांति और सुव्यवस्था कायम करने के नाम पर रोजगार छीनना क्या ठीक है?
लगभग मंडला जिले के 35 हजार लेबर मजदूर वर्ग और लगभग डेढ़ हजार ड्राइवर वर्ग घर पर बेरोजगार बैठे हैं जिनके लिए ₹200 की भी कीमत 2000 के बराबर है। और साथ ही साथ छोटे-छोटे ट्रैक्टर वाले भी घर बैठ गए हैं प्रशासन से निवेदन है इन सभी की वेदनाओं को समझें, यह छोटे ट्रैक्टर वाले रेत का व्यापार करते हैं, गांजा, स्मैक या दारू का नहीं क्योंकि रेत के अलावा बाकी किसी अवैध व्यापार पर ध्यान नहीं दिया जाता जो अवैध है और साथ ही साथ समाज के लिए दूषित भी।
विवेक चौबे , मंडला
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