भादो पूर्णिमा का कबीर पंथ में एक विशेष महत्व है, क्योंकि संवत 1540 (सन 1483) में भादो पूर्णिमा को ही सदगुरु कबीर साहेब जी ने धनी धर्मदास साहेब जी को गुरूवाई सौंपी थी …….
संवत पंद्रह सौ चालीसा, भादो शुक्ल पक्ष दिन तीसा !!
पूरणमासी पूर्ण कहाई , गुरु बासर गुरुवाई पाई !!
धर्मदास कहँ कीन्ह निहाला, गुरुवाई दई आप दयाला !!
आज के समय में यही गुरुवाई सद्गुरु कबीर साहेब जी के द्वारा धनी धर्मदास जी को दिए गए अटल बयालिश वंश आशीर्वाद के रूप में चल रही है और भविष्य में भी सदगुरु कबीर साहेब के वचनानुसार बयालिश वंश तक चलती रहेगी !!
चार गुरु संसार में, धर्मदास बड अंश !
मुक्तिराज लिख दिनिया, अटल बयालिश वंश !!
लेकिन अफ़सोस की बात है आज के समय में कबीरपंथ में बहुत से लोग है जो कबीर साहेब की वाणियो में फेर बदल और अर्थ का अनर्थ करके अपनी मन मर्जी से गुरुवाई चला रहे हैं !! जबकि इनको किसी ने अधिकार नहीं दिया और नाही भविष्य का पता है कि आगे कौन उत्तराधिकारी होगा ??
जब हम साहेब की असीम कृपा से कबीरपंथ में अपना उद्दार कराने को आ ही गए है तो हम क्यों अपना अलग राग अलाप कर क्यों काल के वस में जा रहे हैं !! जबकि हम सबको सद्गुरु कबीर साहेब के द्वारा चलायी गयी अटल अविरल वंश गुरु की परम्परा से जुड़ना चाहिए क्योंकि वंश गुरु स्वंम कबीर साहेब जी की ही रूप है ..
वंश ब्यालिश हम सही, वंश ही रूप हमार !
यामे दो कर जानिये, पड़े चौरासी धार !!
जिनको कबीर साहेब जी ने गुरुवाई सोंपी है उन्ही का तो अधिकार है इस पंथ को आगे चलाने का तो फिर हम आप कौन होते हैं जो अपना अलग राग अलाप रहे हैं !!
सद्गुरु कबीर साहेब ने वंश बयालिश की स्थापना करी है तो उनको पूरा अधिकार भी दिया है , यहाँ तक की कबीर साहेब जी ने कहा है कि
वंशन से दुर्मति करे, नाम जपे कबीर !
ते नर चौरासी जायंगे, कबहू ना लागे तीर !!
कबीरपंथ से जुड़कर वंश विरोधी होना बिल्कुल भी सार्थक नही है ।। हम सबको वंश गुरुओं की छत्र छाया में रहकर ही कबीर साहेब की वाणियो का प्रचार करना चाहिए ।।
सप्रेम .साहेब बन्दगी साहेब
बीरपाल कबीरपंथी,दिल्ली