जीवनानंद के दोहे

 सत्य,प्रेम,अपनत्व से,जीवन में आनंद।
द्वेष,कपट अरु झूठ को,करता कौन पसंद।।

जिसका मन है सात्विक,वह रहता खुशहाल।
काम,क्रोध औ’मोह तो,बुरा करें 
नित हाल।।

जीवन का आनंद तब,पा सकता इनसान।
जब वह नित हर एक का,करता है सम्मान ।।

अंतर्मन में शुद्धता,तो बिखरे आनंद।
पाक़ साफ इनसान को,करते सभी पसंद।।

करुणा का ले भाव जो,करते हैं आचार।
उनको नित खुशियाँ मिलें,हो सुख का संचार ।।

सरल,सहज जो रह सके,तो जीवन उजियार।
अहंकार के भाव से,छा जाता अँधियार ।।

वह पाता आनंद जो,करता पर उपकार।
खुशियों से खुशियाँ मिलें,जीवन पाता सार ।।

धर्म,नीति,अध्यात्म से,जीवन मंगलगान।
परपीड़ा,संवेदना,उल्लासित जयगान।।

जीवन का आनंद तो,है अंतर का भाव।
जिसके मन में राम हैं,कोई नहीं अभाव।।

बुद्ध बनो,नानक बनो,महावीर सा वेग।
हर पल ही आनंद का,तो होगा आवेग।।

प्रो.शरद नारायण खरेप्राचार्य
शासकीय जेएमसी महिला महाविद्यालय
मंडला(मप्र)-481661

प्रमाणित किया जाता है कि प्रस्तुत रचना व अप्रकाशित है -प्रो शरद नारायण खरे

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