यदि हम वास्तव में मनुष्य कहलाना चाहते हैं तो हमें मानवीय गुणों को अपनाना होगा। इसके विपरीत यदि कोई भी भवना मन में आती है तो हमें स्वयं का मूल्यांकन करना होगा और सूक्ष्य दष्टि से मन के तराजू में तोलकर उसे देखना होगा। यह विचार निंरकारी सत्गुरू माता सुदीक्षा महाराज ने महाराष्ट्र के 54 वें प्रादेशित निरंकारी संत समागम के समापन अवसर पर व्यक्त किए।
सत्गुरू माता सुदीक्षा ने कहा कि यथार्थ मनुष्य बनने के लिए हमें हर किसी के साथ प्यार भरा व्यवहार, सबके प्रति सहानुभूति, उदार एवं विशाल होकर दूसरे के अवगुणों को अनदेखा करते हुए उनके गुणों को गृहण करना होगा। सबको समदृष्टि से देखते हुए एवं आत्मिक भाव से युक्त होकर दूसरों के दुख को भी अपने दुख के समान मानना होगा।
संत निरंकारी मिशन मंडला के मीडिया प्रभारी मनोज वरदानी ने बताया कि यह तीन दिवसीय संत समागम इस वर्ष वर्चुअल रूप में आयोजित किया गया। जिसका सीधा प्रसारण निरंकारी मिशन की वेबसाईट एवं कई टीव्ही चैनलों में किया गया। बताया गया कि समागम के तीसरे दिन का मुख्य आकर्षण एक बहुभाषी कवि दरबार रहा।
जिसका शीर्षक स्थिर से नाता जोड़ के मन का, जीवन को हम सहज बनाएं था। इस विषय पर कई कवियों ने अपनी कविताएं मराठी, हिंदी, सिंधी, गुजराती, भोजपुरी आदि भाषाओं में व्यक्त की। समागम के तीनों दिन महाराष्ट्र के विभिन्न क्षेत्रों तथा आसपास के राज्यों एवं देश-विदेश से भी संतों ने सम्मिलित होकर अपने भावों को अभिव्यक्त किया।