डॉ प्रमिला अपने अस्पताल में ओपीडी में बैठी थी तभी एक इमरजेंसी केस आया था। एक महिला के पेट मे असहनीय दर्द था। उसने सिस्टर को हिदायत दी कि तुरंत इसे चेक अप के लिये लेकर आओ। जैसे ही महिला को देखा वो अवाक रह गई ओह ये ये तो बिजुरी है……उसकी माँ जो दर्द में तड़प रही है। उसने उसे काँपते हाथों से चेक अप किया ।अपेंडिक्स का दर्द लग रहा था। फिर दर्द के इंजेक्शन के साथ बोतल चढ़ा दी। बिजुरी को धीरे धीरे नींद आ गई उसका तड़पना भी बंद हो गया। इधर डॉ प्रमिला उर्फ पम्मो पास की कुर्सी में जैसे धम्म से गिर पड़ी उसकी आंखों से आंसू बह निकले ।वो अतीत में पहुंच गई….
बिजुरी की 5 बेटियां थीं। वो लोगों के घर का काम जैसे बर्तन झाड़ू पोंछा करती थी। उसका पति दिन भर रिक्शा चलाता और रात में दारू पीकर बिजुरी को बहुत मारता । उलाहने देता कि एक बेटा न जन सकी वो और बेटे के चक्कर मे बेटियों की लाइन लगा दी। एक तो 5-5बेटियों के पेट की भूख और ऊपर से रोज ही बिजुरी के शरीर में चोट के निशान हुआ करते थे। बड़ी बेटी 15 की ,दूसरी 13 की, तीसरी 12 की, चौथी 10 की और छोटी 7 बरस की थी। धीरे धीरे 15,13 और 12 वाली बेटियों ने घर के काम के साथ साथ दूसरे के घरों का काम भी सम्हाल लिया था। वे भी माँ के साथ वाले घरों में काम करने लगी थीं। थोड़ा बहुत पैसा उन्हें भी मिलता पर बाप दारू के लिये उनसे छुड़ा लेता था। न देने पर अब बड़ी बेटियों को भी मारने लगा था। बड़ी बेटी रज्जो वक्त के साथ समझदार हो रही थी। वो अपनी दोनों छोटी बहनों को पढ़ाना चाहती थी। पर उनका बाप इसके विरोध में ही रहता था। बाप के सुबह काम मे निकल जाने पर रज्जो ने दोनों छोटी बहनों को सरकारी स्कूल भेजना शुरू कर दिया। बहनों ने मन लगा कर पढ़ना शुरू कर दिया। कुछ ही बरस में 10 बरस की पम्मो ने सीधे पांचवीं की परीक्षा दे दी और अच्छे नंबर से पास हो गई। छुटकी जो 7 बरस की थी ने भी दूसरी की परीक्षा पास कर ली। एक दिन स्कूल में सीधी दौड़ प्रतियोगिता हुई। पम्मो प्रथम आई और शील्ड लेकर घर पहुंची।
“दीदी , माँ देखो मैं क्या लाई?”
जैसे ही शाला गणवेश में अंदर पहुंची उसका बाप नशे में धुत्त खटिया पर पड़ा था। उसको आज किराए का रिक्शा नहीं मिला था तो जल्दी घर आ गया था। पम्मो और छुटकी बापू को देख कर एकदम सहम गए क्योंकि दोनों ही स्कूल जाती हैं ये अब बापू को पता चल गया।बापू ने दोनों को खूब मारा। साथ मे पूरे घर की कुटाई हुई। अब तो पम्मो और छुटकी का स्कूल जाना भी बंद हो गया था। पर बापू का गुस्सा शांत नहीं हुआ था।उसने रिक्शा चलाना भी छोड़ दिया और दिन भर पत्नी और बच्चों से पैसे छीन कर दारू पीता , उन्हें गंदी गंदी माँ बहन की गालियां देता और पीटता। पम्मो और छुटकी पर तो अत्याचार की हदें पार कर दी थीं उसने।बाल पकड़ के ,कहीं डंडे से उन्हें पीटता ही रहता। कभी उनसे बीड़ी मँगता कभी तमाखू ,कभी कभी तो पौवा लाने ठेके पर भी भेज देता। ठेके और पान ठेले पर लोगों की गंदी हरकत दोनों को दहशत में भर देती थी। पम्मो के मन मे दहशत समा गई थी। उसका मानसिक संतुलन बिगड़ने लगा ।पहले तो वो पिता से छुटकी को और खुद को बचाती भी थी फिर धीरे धीरे उसने सब छोड़ दिया, बापू पीटता था तो बेजान पुतले की तरह पड़ी रहती । न रोती न वहाँ से हटती थी। बस पिटती रहती थी । गालियों से भी निर्विकार हो गई थी।
माँ और बड़ी बहनों को भी धीरे धीरे पम्मो के बदलते व्यवहार ने चिंतित कर दिया था। माँ और रज्जो पम्मो को बहुत प्यार करते बहुत समझाते पर उसमें कोई अंतर नही दिखा दिनों दिन उसकी हालत खराब होती जा रही थी।अब रज्जो ने काम पर जाना बंद कर दिया था। छोटी बहनों के साथ ही रहकर उन्हें पिता से बचाती रहती थी। पर पिता तो जैसे दिन पर दिन राक्षस होता जा रहा था। अब छुटकी और पम्मो के साथ रज्जो भी दिन भर पिटने लगी। घर जैसे नर्क हो गया था।

एक दिन बिजुरी काम से लौट रही थी कि रास्ते मे उसे पम्मो की शिक्षिका दीप्ति मैडम मिलीं। बिजुरी को देखते ही वे उसकी तरफ बढ़ीं और पूछने लगीं-
“आजकल पम्मो और छुटकी स्कूल क्यों नहीं आतीं?”
“क्या बताऊँ मैडम वो वो….”
कहते कहते बिजुरी रोने लगी।
“क्या हुआ ?तुम जरा इधर आओ “
कहते हुए शिक्षिका दीप्ति ने उसे पास के ही पार्क के बेंच पर बैठाया और स्वयं भी बैठ गई।
“अब बताओ क्या हुआ?” सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा
” मैडम पम्मो तो पागल जैसी हो गई है, उसके बापू……”
कहते हुए बिजुरी सिसकने लगी और आँखों से लगातार बहते आंसू पोंछते हुए उसे सारी घटना बता दी।
दीप्ति ने अपनी पानी की बोतल निकाल कर बिजुरी को पिलाया ,उसे थोड़ा समय दिया ,उसकी पीठ पर हाथ रख दिलासा दिया फिर कहा
” तुम चिंता न करो सब ठीक हो जायेगा।पम्मो तो बहुत होशियार है। मैं उसे ठीक करके ही रहूँगी”
दीप्ति ने बिजुरी से उसके घर का पता लिया और कहा कि
“मैं कल दस बजे तुम्हारे घर आऊँगी तुम घर पर ही मिलना”
बिजुरी अपने आंसू पोंछती हुई एक उम्मीद की किरण लेकर घर पहुंची।
उसने रज्जो से सब बताया पर उसे बहुत डर लग रहा था कि न जाने कल क्या होगा।
अगले दिन दीप्ति नशा मुक्ति केंद्र के लोगों और पुलिस के साथ बिजुरी के घर पहुंची। रज्जो का बापू उन्हें देखते ही फिर गाली गलौज करने लगा। पम्मो एक तरफ निर्विकार बैठी थी। जबकि छुटकी ने अपनी टीचर को नमस्ते किया। बापू के गाली गलौज करने पर एक पुलिस वाला आगे आकर उसे 2-3 लट्ठ जमा कर पकड़ लेता है। अब तो बापू की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई। बिजुरी से जरूरी कागजात में दस्तखत करवा कर बापू को नशा मुक्ति केंद्र भेज दिया गया। उसके जाते ही जैसे घर मे शांति छा गई। दीप्ति बिजुरी से आग्रह करती है
“क्या कुछ दिन के लिये पम्मो को मेरे साथ भेजोगी?”
शिक्षिका के आग्रह को बिजुरी मान लेती है।
दीप्ति पम्मो को मानसिक रोग विशेषज्ञ के पास ले जाती है। डॉक्टर साब बताते हैं कि-
” इसके नन्हे मन को बहुत चोट लगी है, इसके साथ बाल अत्याचार किया गया है। इसे प्यार की बहुत जरूरत है।”
दीप्ति वैसे भी अकेले ही रहती थी। उसने पम्मो को भरपूर प्यार देना शुरू किया और उसका हौसला भी बढ़ाती रही। छोटी छोटी बातों में उसकी तारीफ करना और उसका पूरा ध्यान रखना दीप्ति का मुख्य काम हो गया था। धीरे धीरे पम्मो सामान्य होती गई। अब दीप्ति उसे स्कूल भी ले जाने लगी। उसे पढ़ाती और ध्यान रखती । एक दिन दीप्ति मैडम पम्मो को लेकर बिजुरी के पास जाती है ।माँ को देखते ही पम्मो उनसे लिपट जाती है। “छठवीं की परीक्षा में पम्मो प्रथम आई है”
दीप्ति ने बिजुरी और रज्जो को बताया।
बहने और बिजुरी दीप्ति मैडम के चरणों मे झुक गईं। सबकी आंखों से अनवरत आंसू निकल रहे थे। एक कोने में पम्मो का बापू भी बैठा था। पम्मो उसे देखकर फिर सहम जाती है और दीप्ति के पीछे छुप जाती है। तब बिजुरी ने कहा
मत डर बिटिया तेरे बापू बदल गए हैं। अब दारू नहीं पीते। हमें मारते भी नहीं। बापू की आंखों से आंसू बह रहे थे वो उन्हें छुपाते हुए हाथ जोड़कर कहते हैं “माफ कर दे मेरी बिटिया मुझे ,ये देवी स्वरूपा मैडम न होतीं तो मैं कभी भी नशे से उबर न पाता। इन्हीं का चमत्कार है कि हमारा परिवार बरबाद होने से बच गया। “
दीप्ति ने धीरे से कहा
“यदि आप लोगों को आपत्ति न हो तो मैं पम्मो को गोद लेना चाहती हूं। ” बिजुरी ने कहा
“इसी में इसकी भलाई है।” कोई कुछ नहीं बोला। पम्मो दीप्ति माँ के साथ चली आई थी।
दत्तक पुत्री के लिए सभी अहर्ताएं पूरी कर के पम्मो विधिवत दीप्ति की बेटी बन गई थी। डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी करके हफ्ते भर पहले ही वो इस अस्पताल में पोस्टेड हुई थी और आज माँ से उसकी मुलाकात हुई वो भी इस तरह। अचानक माँ को होश आने लगा उनका दर्द भी कम था। उन्होंने धीरे से आंखे खोली तो सामने सफेद एप्रन में स्टेथोस्कोप लटकाए पम्मो को देखा। आंखे आंसुओ से भर गईं।
बुदबुदाते हुए बोलीं
“दीप्ति मैडम जी आपने तो चमत्कार ही कर दिया। माँ के गले लगने पम्मो उठी तो पीछे हलचल हो रही थी।
पीछे दरवाजे पर खड़े उसके बापू ,रज्जो , सन्नो , मुन्नी और छुटकी खुशी में आंसू बहा रहे थे।
अर्चना जैन
मण्डला