बेटी-दैवीय अवतार

छोटी बिटिया गुड़िया जैसी,देवी-सी लगती है।
बेटी से ही सबकी क़िस्मत,फूलों से सजती है।।

बेटी तो है जग की शोभा,
घर का एक खिलौना
आकर्षण जिससे दुनिया का,
महके घर का कोना
बेटी से ही संस्कार हैं,नैतिकता खिलती है।
बेटी से ही सबकी क़िस्मत,फूलों से सजती है।।

बेटी बहना है,पत्नी है,
है वह नेहिल नारी
बेटी बिन तो यह जग सूना,
दुनिया उजड़ी सारी
गुड़िया रूप लुभाता सबको,रौनक नित पलती है।
बेटी से ही सबकी क़िस्मत,फूलों से सजती है।।

बेटी अहसासों का सागर,
भावों की सरिता है
चित्रकार की है वह रचना,
कवि की वह कविता है
चंदन-वंदन,अभिनंदन है,तोहफ़े-सी लगती है।
बेटी से ही सबकी क़िस्मत,फूलों से सजती है।।
                   

प्रो(डॉ)शरद नारायण खरे

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