भारत की लोकसभा की एक मिनट की कार्यवाही का व्यय 2.60 लाख रुपये अर्थात 1दिन का का व्यय 1.50 करोड रुपये है । इसी प्रकार राज्यसभा की 1 दिन की कार्यवाही पर 1.10 करोड़ रुपये व्यय होता है,अर्थात राष्ट्र की सबसे बड़ी दोनों पंचायतों ( संसद सदनों ) के संचालन का 1 दिन का व्यय 2.60 करोड रुपये है।
इसका तात्पर्य तो यह हुआ कि भारत एक धनाढ्य देश है किन्तु विदित हो कि हमारे देश की प्रति व्यक्ति,प्रति माह आय ( पर कैपिटा इनकम ) मात्र ₹7880/- है अर्थात प्रति व्यक्ति,प्रतिदिन मात्र ₹262/- कमाता है अर्थात 1000 ( एक हजार ) व्यक्ति अपने रूखे-सूखे जीविकोपार्जन हेतु 1दिन में जितना कमाते हैं लगभग उतनी राशि मात्र एक सदन (लोकसभा) के 1 मिनिट के संचालन की कार्यवाही में व्यय हो जाती है,चाहे उस मिनिट सदन चले अथवा न चले।प्रति व्यक्ति आय को बोलचाल की भाषा में “औसत आय” भी कहा जाता है। औसत आय के आँकलन के अनुसार हम बांग्लादेश से भी गरीब देश हैं ।औसत आय की गणना का सूत्र यह है कि जब किसी देश के कुल “सकल घरेलू उत्पाद”(जीडीपी) को उस देश की उस वर्ष की “मध्यावधि तिथि”की जनसंख्या से विभाजित किया जाता है तो प्राप्तांक उस देश के निवासियों की प्राप्त होने वाली औसत आय की “मौद्रिक जानकारी”होती है। वर्तमान में तो सकल घरेलू उत्पाद चिंताजनक स्थिति में है फलतः औसत आय रसातल में चली गई है ।
जिन सांसदों,विधायकों, मंत्रियों व अन्य अति विशिष्ट व्यक्तियों की सुविधाओं,सुरक्षा,वेतन,भत्ता, पेंशन,निवास,प्रवास,यात्रा आदि पर विशेषाधिकार का हवाला देकर देश प्रतिवर्ष अरबों रुपए खर्च करता है । ये अति विशिष्ट व्यक्ति ही कर्तव्य विमुख होकर देश के दोनो सदनों ( प्रान्तों के सदनों में भी – जहाँ विधान परिषद हैं उस प्रान्त में दो सदन हैं ) के सत्रों को हंगामों की भेंट कर सदन को चलाने पर व्यय किये अरबों रुपये व्यर्थ में झोंक देते हैं ।
इनकी सुरक्षा व्यय का विवरण तो अकल्पनीय व अविश्वसनीय सा प्रतीत होता है । आखिर अपने ही देश में इन लोकप्रिय व्यक्तियों को किस से खतरा है ? लोकप्रिय इसलिये कहा जा रहा है कि वे लोकप्रिय हैं तभी तो विजयी होकर लोकसभा में,राज्यसभा में,विधानसभा व विधान परिषद में पहुंचे हैं ।अपने ही लोगों से यदि इन्हें भय व खतरा है तो फिर राजनीति क्यों करते हैं ? सार्वजनिक जीवन का त्याग कर अपने घरों में बैठकर साधारण जीवन यापन करें । कई राष्ट्रों के सांसद राजनीति के अतिरिक्त अपनी जीविका हेतु अन्य कार्य / व्यवसाय करते हैं । सांसद होना उनकी जीविका का नही अपितु राष्ट्र सेवा का कार्य है । कई राष्ट्राध्यक्षों को बाजार में स्वयं,स्वतः के साधनों से आकर सब्जी,आनाज आदि आवश्यक वस्तुयें क्रय करते देखा जा सकता है किन्तु हमारे प्रतिनिधी बहुमूल्य वाहनों में काफिले के साथ निजी कार्य हेतु शासकीय सुविधाओं का दुरुपयोग करते हैं ।
सत्ता पक्ष से जनसाधारण की अपेक्षा होती है कि वह राष्ट्रहित में सकारात्मक कार्य करें जबकि विपक्ष उनके कार्यों पर निगरानी व नियन्त्रण रखकर संसद में समुचित प्रश्न पूछे । विडम्बना है कि वर्तमान में सत्ता पक्ष पर कानून निर्माण जैसे गंभीर मामले में स्वेच्छाचारिता का आरोप लग रहा है क्योंकि 15वीं लोकसभा में 71% बिल संसदीय समिति के विचारणार्थ भेजे गए थे जबकि 16 वीं में 27% एवं वर्तमान लोकसभा में अभी तक मात्र 12% ही । वहीं विपक्ष पर रचनात्मक आलोचना एवम जन भावनाओं को आवाज देने की संभावना धूमिल होती चली जा रही है। दुर्भाग्य है कि सत्ता पक्ष एवं विपक्ष दोनों ही अपने इन परम कर्तव्यों से विमुख हो गये हैं।
संविधान निर्माताओं ने शासन पद्धति के लिए “ब्रितानी संसद” का मॉडल लिया था । प्रशंसनीय है कि ब्रिटेन में 31 जुलाई 2018 को एक मंत्री ने सदन में 1 मिनट देरी से आने के कारण त्यागपत्र दे दिया था कि उनके इस आचरण से महिला सांसदों के प्रति डिस्कर्टेसी अर्थात अशिष्टता हुई है क्योंकि उस दिन उन्हें समय पूर्व सदन में उपस्थित होकर महिला सांसदों के प्रत्युत्तर देने थे। इस पद्धति का तथाकथित अनुसरण करने वाले हमारे दोनों सदन के सदस्य इस शिष्टता से परे हैं । इस सत्र में आरोप-प्रत्यारोप है कि – महिला सांसदों की मार्शलों द्वारा पिटाई की गई एवम सांसदों द्वारा मार्शल के साथ मारपीट। मानसून सत्र में विभिन्न प्रकार के इन अशोभनीय कृत्यों ने राष्ट्र को लज्जित किया है । हमारी संसद का इतिहास भी अत्यंत गरिमामय रहा है । संसद हमारे महापुरुषों के उत्कृष्ट व्यवहार की पराकाष्ठा के स्वर्णीम युग का साक्षी है । दो दशक पूर्व तत्कालीन गृहमंत्री एक गंभीर मुद्दे पर वक्तव्य दे रहे थे । एक युवा सांसद बीच में खड़ा हो गया जिसे पीठासीन अधिकारी ने डाँटकर बैठने को कहा किंतु इसके पूर्व ही गृहमंत्री अपना वक्तव्य रोककर बैठ गये । जब उनसे इसका कारण पूछा गया तो उन्होंने कहा कि “वेस्टमिंस्टर सिस्टम”- जिसके अनुसार यदि आपके वक्तव्य के मध्य कोई अन्य खड़ा होता है तो उसका तात्पर्य यह है कि खड़े होने वाले व्यक्ति की बात आपसे ज्यादा महत्वपूर्ण है।अतः आपको बैठ जाना चाहिये।ऐसा शिष्टाचार अब कहाँ शेष है।अब तो एक दूसरे पर कुर्सियाँ फेंकना, संवैधानिक प्रपत्रों को फाड़ कर फेंकना, आसंदी पर विराजमान संवैधानिक पदाधिकारी की अनसुनी करना आम बात हो गई ।
आज भी हमारे सदनों में अतुलनीय विद्वान विद्यमान हैं किंतु “सत्य निरन्तर प्रताड़ित” है । विगत 2 वर्षों में कोविड-19 के संक्रमण के कारण बड़े पैमाने पर हुई मौतों,संक्रमण पीड़ितों के उपचार खर्च व निजी अस्पतालों को प्रशासन द्वारा लूट की प्रदत्त खुली छूट अथवा मूक सहमति के चलते साधारण लोगों को महंगाई, बेरोजगारी,गरीबी ने जकड़ लिया है तो दूसरी ओर गुजरात के व्यवसायी गौतमअदानी की संपत्ति में 3.19 लाख करोड़ रुपये की आश्चर्यजनक वृद्धि हुई है । इस विकट परिस्थिति में स्वस्थ लोकतंत्र की परम्परा का निर्वहण करना सत्ता पक्ष एवम विपक्ष दोनो का ही दायित्व है क्योंकि दोनों को जनता ही चुनती है ।
आज किसानआंदोलन, पेगाससजासूसी ,कॅरोना से हुई मौतें,नदियों में तैरती देखी गई लाशों का सत्य,औषधियों व ऑक्सीजन की कमी के दुष्परिणाम,चरमरातीअर्थव्यवस्था, बेरोजगारी,महंगाई, गरीबी,बैंक स्कैम,भगोड़ों का प्रत्यार्पण, नोटबंदी व जीएसटी के तथाकथित दुष्प्रभाव,कोविड-19 की संभावित तीसरी लहर से निपटने व उपचार की योजना, वैक्सीनेशन की गति,70% वैक्सीन मिशन, हॉस्पिटल और स्वास्थ्य सेवाओं को सुचारू करना,बच्चों की शिक्षण व्यवस्था, कामगारों और प्रवासी मजदूरों की समस्या आदि अनेक ऐसे मुद्दे हैं जिन पर संसद मे सार्थक चर्चा , बहस एवं प्रश्नोत्तरआपेक्षित है । सत्ता और विपक्ष विचार विपरित हो सकते हैं किंतु अंतिम लक्ष्य प्रजा व राष्ट्र का हित व उनके प्रति सकारात्मक उत्तरदायित्व होना चाहिये । मैं अर्थशास्त्री नहीं हूँ । पुलिस मेन होने के कारण अर्थशास्त्र के संबंध में मेरा उतना ही ज्ञान है जितना एक अर्थशास्त्री का पुलिस कार्यप्रणाली के संबंध में हो सकता है किन्तु अन्य सामान्य नागरिकों की भाँति मैं भी कभी यह समझ नहीं पाया कि संसद में ऐसा क्या होता है कि उसके प्रति मिनट संचालन का व्यय रु.2.60 लाख है । इस गणना से तो इस मानसून सत्र में अरबों रुपए का अपव्यय हुआ है । इस समग्र ख़र्चीली प्रणाली में सकारात्मक सुधार आपेक्षित व वाँछित है । परिणामतः इस अपव्यय की बचत कर यह धन स्वास्थ्य,शिक्षा व रोजगारोन्मुखी समुचित विकास मे उपयोग किया जा सके ।
नरेश शर्मा,
“राज्य पुलिस सेवा” ,
नगर पुलिस अधीक्षक ( से.नि. ) जबलपुर