आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से पितृपक्ष का आरंभ हुआ।इस एक पखवाड़े तक पूर्वजों की अवसान तिथि पर
शायद करके उन्हें जल तर्पण देकर,दान पुण्य करके अपने पूर्वजों का आशीर्वाद पाने का विधान है। कहते हैं इन दिनों हमारे देव तुल्य पितृ भूलोक पर आकर वास करते हैं।और अपने परिजनों द्वारा अर्पित तर्पण व भोग से संतुष्टि पाकर उन्हें आशीर्वाद प्रदान कर अपने अपने लोक के लिए विदा लेते हैं। हमारे पूर्वज जो कभी हमारे साथ रहे, हमारे हर संकट में चट्टान की तरह हमारे आगे ढाल बनकर खड़े रहे,जिनके निर्मल आशीर्वाद की पावन धारा आज भी हमारे परिवार की बगिया को सिंचित कर रही है।उन्होंने कभी हमसे कुछ लिया नही,बस दिया ही दिया है और आज तक दे रहे हैं। धन दौलत जमीन जायदाद ना तब उनकी प्राथमिकता रहे ना अब है। बस हमेशा हमसे एक ही चाह रही है उन्हें और वह है हमारा निश्चल प्रेम।आजकल कुंडली के पित्र दोष के कारण और पंडितों के कारण पितृपक्ष जरा जोर शोर से मनाने लगे हैं।इन दिनों वृद्ध आश्रमों में या गरीब भिखारियों को इतना भोजन मिलता है कि वह खा नहीं सकते। अपने पुरखों के नाम पर खाना खिलाना दान देना बढ़-चढ़कर होता है। जिनके पास है और भावनाएं भी नेक है तो अच्छा है ।अन्यथा इस दिखावे से उनका आशीर्वाद मिलेगा इस भ्रम में आज भी कई अमीर ज्यादे रह जाते हैं। बुजुर्ग हमारी प्रेरणा है, हमारे घर परिवार की रौनक है, उनकी उपस्थिति में जो मानसिक संबल जो मनोबल हमारे पास होता है वह अनुभूति अविस्मरणीय होती है। हम हर हाल में उन्हें सम्मान दें, प्रेम दे ,सहानुभूति दें, सहयोग दें जीते जी उन्हें हर खुशी देने का प्रयत्न करें। उन्हें संतुष्टि के भावों के साथ विदा करें तो दुनिया के किसी भी लोक में जाकर वे संतुष्ट ही रहेंगे। उनके दिए संस्कारों को पीढ़ी दर पीढ़ी स्थानांतरित करें उनके नाम को सम्मान के साथ आगे बढ़ाएं।आशीषों के सुमन तो अपने आप ही झरते रहेंगे। मेरा अपना अनुभव है मेरे पूर्वजों के लिए मैंने हर सुख ,हर त्यौहार में उन्हें श्रद्धा से भोग लगाया है। अपने हर खुशी में सबसे पहले उन्हें भागीदार बनाया है हर संकट में उनसे सहायता की प्रार्थना की है।और उन्होंने हमेशा मेरी श्रद्धा और भरोसे की लाज रखी है।हमारे परिवार में हमने हमेशा उन्हें अपने पास महसूस किया है। वह हमेशा हमारी भावनाओं में हमारे एहसासों में और अभिव्यक्ति में जीवित रहेंगे।इसलिए इन पित्र पक्ष में हम उन्हें तर्पण देते हैं और भोग भी लगाते हैं,श्राद्ध भी करते हैं ।पर उनके ही घर से विदा करने की हिम्मत हम अभी तक नहीं जुटा पाए।इसलिए विधान जो भी हो हम उन्हें कभी विदा नहीं करते।
प्रीति मनीष दुबे
मण्डला(म.प्र)