गीता जयंती

तुम्हारा क्या गया जो तुम रोते हो तुम क्या लाए थे
जो खो दिया जो लिया यहीं से लिया जो गया यही गया
ना तुम कुछ लाए थे और ना ले जाओगे यह ब्रह्म वाक्य गीता का सार है

आज गीता जयंती है मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की एकादशी को यह मनाई जाती हैl महाभारत युद्ध में इसी दिन श्री कृष्ण जी द्वारा अर्जुन को गीता का ज्ञान उपदेश दिया था इसे मोक्षदा एकादशी भी कहा गया है इस दिन गीता का पाठ का विशेष महत्व है अतः यदि इस दिन गीता का पाठ करके समझते हुए आत्मसात किया जाए तो बहुत ही लाभदायक रहेगा
गीता में 18 अध्याय मैं कुल 700 श्लोक हैं प्रमुख रूप से कर्म योग ज्ञान योग भक्ति योग के बारे में चर्चा की गई है
एक किंकर्तव्यविमूढ़ व्यक्ति एवं सुधी जन को दिशा निर्देशित करने वाला यह महान ग्रंथ गीता है lज्ञान की दिशा देकर अपने आप को अपने स्वरूप को एक करवाता है
इस महान ग्रंथ की मीमांसा 80 भाषाओं में, 300 में अनुवाद एवं सैकड़ों भाष्य हो चुके हैं इसमें प्रमुख रूप से अष्टावक्र की गीता, संत ज्ञानेश्वर की गीता, दत्तात्रेय जी की गीता, आदि शंकराचार्य द्वारा, श्री रामानंद रामानुजन द्वारा ,श्री परमहंस योगानंद जी द्वारा, श्री प्रभुपाद जी द्वारा, स्वामी श्री आनंद जी द्वारा, श्री राम सुख महाराज द्वारा, श्री प्रसाद हनुमान पोद्दार द्वारा, श्री मधुसूदन सरस्वती द्वारा, श्रीधर स्वामी ,महात्मा गांधी जी द्वारा, बाल गंगाधर तिलक, श्री बिनोवा भावे, स्वामी अड़गड़ानंद, श्री जयदयाल गोयंदा जी, श्रीराम शर्मा आचार्य जी ,श्री श्री रविशंकर जी द्वारा इसकी मीमांसा की गई है
अनादि काल से अद्वैत व द्वैत मैं विवाद की विवेचना होती आ रही है प्रमुख रूप से अद्वैत वेदांत के जनक अष्टावक्र द्वारा राजा जनक के मध्य के संवाद को प्रस्तुत किया गया है ज्ञान वैराग्य मोक्ष की मीमांसा की गई है और जितने भी गीता पर भाष्य हैं उनमें सबसे प्रमुख रूप से अष्टावक्र की गीता है श्री कृष्ण जी ने कहा की हर इंसान के द्वारा अपने जीते जी जन्म मरण के चक्र को जान लेना अति आवश्यक है क्योंकि मनुष्य में जीवन का एकमात्र वह मुख्य सत्य मृत्यु ही है lजन्म लेने वाले इंसान को इस संसार को छोड़कर ही जाना है यही एकमात्र सार्वभौमिक सत्य है गीता हमें जीवन जीने की कला सिखाती है जीवन किस प्रकार शांति में हो सकता है उस हेतु प्रयास करना चाहिए जीवन का दूसरा नाम संघर्ष है और मुश्किल समस्या वह संघर्ष के समय सब कुछ अपने आराध्य पर छोड़ देना एवं निश्चिंत हो जाना यही गीता हमें प्रमुख संदेश देती है जीवन में कर्म तो करें किंतु फल की चिंता ना करते हुए निष्काम कर्म की ओर प्रेरित करती है गीता सिखाती है की ज्ञानी व्यक्ति ज्ञान और कर्म को समान रूप से देखता है जबकि अज्ञानी पुरुष को ज्ञान ना होने से उसका हर चीज पर नजरिया गलत हो जाता हैl
सभी धर्मों को त्याग कर मेरी शरण में आ यह प्रमुख संदेश देती है गीता l
धर्म व्यक्तिगत है जिसे हम धर्म समझ रहे है वह संसार है गीता सभी धर्मों व ग्रंथों का सार है यह देश काल धर्म से परे है इसमें वास्तविक तत्व परमात्मा का वर्णन है माया की जटिलता के कारण प्रकृति जन्य मनुष्य अपने पथ से भटक जाता है और राग द्वेष , मोह माया में पड़ कर अपना मूल स्वरूप हो देता है l
अनेक शास्त्रों का क्या प्रयोजन जब श्रीमद्भगवद्गीता श्री हरि के मुख से वर्णित है व्यक्ति पढ़कर अपने परम तत्व को प्राप्त कर सकता है यह बात तो तय है कि हर व्यक्ति स्वतंत्र है और व्यक्ति को अपने जीते जी मुक्त होना होगा जरूरी नहीं कि आप संन्यास लेकर वानप्रस्थ हो जाए और जंगल जंगल भटकते रहे घर में रहते हुए ही आप मुक्त हो सकते हैं इसके लिए प्रतिदिन प्रयास करना जरूरी है क्योंकि योग माया का प्रभाव इतना जटिल है किसी व्यक्ति का निकलना असंभव तो नहीं है इसे संभव बनाने के लिए हर दिन प्रयास करना होगा सब में रहते हुए सबसे अलग रहना होगा दूसरों की ओर कम देखकर अब अपनी तरफ देख जीना होगा जब सब यहीं छूट जाना है तो मोह माया से तो विरक्त होना ही होगा अकेले आए हैं अकेले जाना है ना किसी को साथ लाए थे ना कोई साथ में जाएगा यह सब हमारा खुद का बनाया मोह जाल है इससे जितनी जल्दी मुक्त हो सके नहीं तो पुनर्जन्म लेना होगा

सरिता अग्निहोत्री मंडला मध्य प्रदेश

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