मर्यादा पुरुषोत्तम के जन्मोत्सव पर अमर्यादा : पंडित नरेश

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जीवन के प्रारंभिक दिनों से ही या यूँ कहें कि होश संभालते ही हम सुनते आये हैं कि “विविधता (अनेकता) में एकता ही भारत की विशेषता है”। विविधता अथवा अनेकता को पुलिस में 35 वर्ष की सेवा करते अत्यंत निकट से देखा है,जाना है।देश मे विद्यमान यह विविधतायें धार्मिक,क्षेत्रीय, जातीय,सामुदायिक,भाषायी, सांस्कृतिक,लोक-स्तुतियों,पहनवा परंपराओं,रूढ़ियों,प्रथाओं,मान्यताओं,रिवाजों आदि में दृष्टिगोचर होती है जो अत्यंत मनमोहक एवम नयनाभिराम भी हैं ।अपने गृहनगर खंडवा में जहाँ बचपन में हमने हिंदुओं को मोहर्रम पर्व के अवसर पर अंगारों (अलाव ) पर कूदते, सवारी रखते,बाघ बनकर नाचते देखा है तो वहीं मुस्लिमों को भी हिंदुओं के धार्मिक पर्वों पर भागीदारी करते हुए देखा है। हिंदू-मुस्लिम को एक दूसरे के त्योहारों को मनाते आये हैँ ।अतः हिंदुस्तान को “गंगा-जमुनी तहजीब” का देश कहा जाता है । हमने हिंदुओं को सिर पर कपड़ा बांधे मजारों पर ढोक लगाते देखा है तो मुस्लिमों को भी हिंदुओं के मंदिरों के समक्ष त्योहारों के उपलक्ष्य में “लंगर-ए-आम” का आयोजन करते देखा है। हमारे “सिक्ख समुदाय” की तो क्या मिसाल … उनकी “सर्वधर्म समभाव” से परिपूरित सेवा व सद्भावना अद्भुत व अतुलनीय है । म.प्र.के खंडवा, बुरहानपुर खरगोन,धार,झाबुआ,इंदौर,उज्जैन,देवास,रतलाम,मंदसौर,भोपाल,राजगढ़,रतलाम,मंदसौर,जबलपुर,कटनी,सिवनी,छिंदवाड़ा,बालाघाट,पन्ना,दमोह,छतरपुर,टीकमगढ़,सागर,नरसिंहपुर,मंडला,डिंडौरी,बालाघाट,होशंगाबाद,हरदा,सतना,रीवा,शहडोल,भिंड,मुरैना,ग्वालियर आदि जिलों व छत्तीसगढ़ प्रांत के ग्रामीणों व आदिवासियों से प्रत्यक्ष मेलजोल व उनकी जीवनशैली को समझने जानने का सुअवसर प्राप्त हुआ है । उनकी सादगी सुंदरता एवं रमणीयता ने सदैव मुझे भावविभोर किया है । वे मूकतः हमें यह शिक्षा भी देते हैं कि अभाव में किस प्रकार दृढ़ता पूर्वक जीवन यापन किया जा सकता है । कालांतर में खंडवा में वह दौर भी देखा कि जब सांप्रदायिक दुर्भावना के चलते अनंत चतुर्दशी की शोभा यात्रा कतिपय कारणों से कई दिनों तक सड़क पर ही खड़ी रही व प्रथम पूज्य श्री गणेश को विसर्जन हेतु 15 दिवस प्रतीक्षा करनी पड़ी, फिर तो यह क्रम यत्र-तत्र-सर्वत्र अबाध गति से विस्तारित होता चला गया । भारत में इस कटुता का प्रादुर्भाव व बीजारोपण तो अंग्रेज कर ही गये थे इसका इतना भयावह हो जाना,यह सूक्ष्म विश्लेषण का विषय है-इस हेतु तुष्टीकरण या एकाधिकरण को आरोप-प्रत्यारोप कर उत्तरदायित्व ठहराया जा सकता है । मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के जन्म उत्सव पर देश अनेक स्थानों पर कतिपय तत्वों द्वारा किया गया अमर्यादित आचरण घोर चिंतनीय भी है । हमे यह स्वीकार करना ही होगा कि हमारा युवा वर्ग यंत्र चलित होकर असन्तुलित मानसिकता से ग्रसित व दिशाहीन हो रहा है । जिसके नैपथ्य में अदृश्य शक्तियाँ सक्रिय हैं । आचार्य रजनीश की यह विचारधारा कि — “आपका धर्म अगर आपसे दंगा करवाता है,नफरत करवाता है,इंसान से भेद करवाता है तो धर्म नहीं आप एक गिरोह के चंगुल में फंसे हुये हैं”। वर्तमान परिवेष में युक्तियुक्त व यथार्थ है । हमारे संविधान के अनुरूप देश में सभी को समान अधिकार प्राप्त है । कौन किस दिन,क्या खायेगा और क्या नहीं खायेगा , इसका निर्णय उस व्यक्ति विशेष के अतिरिक्त अन्य किसी को निर्धारित करने का कोई अधिकार नहीं है किंतु क्या वर्ग विशेष की भावना का सम्मान करते हुए मात्र एक दिन हेतु शाकाहारी नहीं बना जा सकता ? जे.एन.यू का घटनाक्रम आचार्य रजनीश के अनुसार एक गिरोह द्वारा संचालित प्रतीत होता है।यहाँ शिक्षण के अधिक वैमनस्यता का पाठ पढ़ाया जाना दृष्टिगोचर हो रहा है । मध्य प्रदेश ,गुजरात, कर्नाटक व अन्य राज्यों के कई जिलों में नगरों में,कस्बाई और ग्रामीण क्षेत्रों में मर्यादा पुरुषोत्तम के जन्मोत्सव पर सांप्रदायिक द्वेष का प्रसार होना “एकता से अनेकता” की ओर अग्रसर होने का एक और चिंतनीय उपक्रम है । अनुपयुक्त स्थान पर भगवा फहराना,शोभा यात्रा का विरोध ध्वनी विस्तारक यंत्रों से करना,पूजा स्थलों से पथराव करना,चिन्हित आगजनी करना आदि कृत्य दुर्भावना से परिपूरित पूर्व तैयारी के साथ किया गया सुनियोजित षड्यंत्र है । यह प्रदर्शित करता है कि पुलिस के “आसूचना- संकलन”में,शोभा यात्रा के मार्ग निर्धारित करते समय मार्ग में पड़ने वाले संवेदनशील स्थलों का आँकलन में करने में पर्याप्त दूर- दृष्टि का अभाव रहा है ।शोभायात्रा व उसके मार्ग में शस्त्रों,पत्थरों व ज्वलनशील सामग्री का एकत्रीकरण आश्चर्यजनक है ।ऐसे संवेदनशील संभावित स्थलों की पूर्व चौकसी का लोप किया गया प्रतीत होता है । त्यौहार के पूर्व शांति समिति की बैठक में सभी वर्गों को विश्वास में लेकर समुचित दिशा निर्देश तो दिये गये होंगे किंतु उनका क्रियान्वयन व अनुपालन सुनिश्चित नही किया गया ।पर्याप्त प्रतिबंधात्मक कार्रवाही का अभाव एवम आयोजकों को उनके उत्तरदायित्वों हेतु पाबन्द न किया जाना भी एक कारण हो सकता है । अन्यथा ऐसी घटना को टाला जा सकता था,विशेषकर खरगोन जैसे छोटे जिले मे जहाँ पुलिस कप्तान स्वतःही आहत हो गये । इंदौर के विख्यात “रंग पंचमी पर्व” पर,जहाँ लगभग 5 लाख लोग एक साथ एकत्रित थे,जिसका मैं स्वयं भी साक्षी रहा हूँ , की चाक-चौबंद व्यवस्था का श्रेय पुलिस कमिश्नर श्री हरिनारायणचारी मिश्र एवं अतिरिक्त पुलिस कमिश्नर श्री मनीष कपूरिया की संवेदनशीलता एवं दूरदर्शी दृष्टि का प्रत्यक्ष प्रमाण है,जबकि “कश्मीर फाइल्स”फिल्म का तभी प्रदर्शन होने से वह कालखण्ड अति संवेदनशील बनाहुआ था ।वे अधिकारी द्वय साधुवाद एवं बधाई के पात्र हैं जिन्होंने स्वतः है चप्पे-चप्पे का भ्रमण कर जुलूस के मार्ग का सूक्ष्म अवलोकन किया वह सभी वे सभी पूर्व उपाय तथा प्रतिबंधात्मक कार्यवाही सुनिश्चित संपादित करवाई जो आवश्यक थी जिसकी सुखद परिणीति भी हुई । भगवान श्री राम मानवता,संस्कृति,सभ्यता और जीवन पद्धति का मौलिक रूप हैं ।उनका उद्देश्य मानव जीवन के “मूल्यों की स्थापना” करना था । यह सर्वकालिक मान्यता है कि भारत के “रोम-रोम” में राम हैं । लोक में राम है,हर साँस में भी राम है ।मिट्टी,हवा,जल में भी राम है। हम एक-दूसरे से मिलते हैं तो राम-राम कहते हैं । अच्छे बुरे समाचार मिलने पर राम राम उच्चारते हैं । हमारा युद्ध घोष भी जय श्री राम है । महात्मा गाँधी ने सीने पर गोली खाकर भी “हे-राम” ही कहा था अर्थात हमारी आत्मा ही राम है ।राम ही भारत की संपदा,वैभव,यश,कीर्ति व मर्यादा है,जन-जन की खुशियां है । राम अर्थात में जिनकी आराधना स्वयं “देवों के देव महादेव शिव” करते हैं ।श्री हरि विष्णु,ब्रह्मा,व शिव जी के मुकाबले राम जीवन यात्रा के अंतिम पड़ाव तक मृतक का सबसे ज्यादा साथ देते हैं । हर हिंदू का विश्वास इस बात पर आधारित है कि जब वह अंतिम यात्रा पर चलेगा तो उसके पीछे “राम नाम सत्य है” गूँजेगा । कई अवसरों पर राम ने स्वतः को कलंकित कर लिया किंतु मर्यादाओं का उल्लंघन नहीं किया । ऐसे मर्यादा पुरुषोत्तम के जन्मोत्सव पर उक्त घटित अमर्यादा सर्वथा निंदनीय कठोरतम कार्यवाही योग्य है । हमारे लोकप्रिय मुख्यमंत्री की मंशा अनुरूप व उनके आदेश के पालनार्थ “विध्वंसक तत्वों” के घरों व प्रतिष्ठानों पर “बुलडोजर” चलाना ही विकल्प शेष है । श्री राम जी ने भी तो कहा है विनय न मानत जलधि जड़ गये तीन दिन बीत,बोले राम सकोप तब भय बिन होय न प्रीत ” इस विषय पर की जा रही सभी राजनीति भर्त्सना योग्य है ।

पं.नरेश शर्मा,राज्य पुलिस सेवा,नगर पुलिस अधीक्षक (से.नि.)

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