भाषा की समृद्धि में उसका तकनीकी पक्ष तथा साहित्य सर्वाधिक महत्वपूर्ण होता है .तकनीक ने ही हिन्दी को कम्प्यूटर से जोड़ कर वैश्विक रूप से प्रतिष्ठित कर दिया है .हिन्दी साहित्य की श्रीवृद्धि में भी अनेक अभियंता साहित्यकारो का अप्रतिम योगदान है , स्व. चंद्रसेन विराट हिन्दी गजल में , इंजीनियर नरेश सक्सेना हिन्दी कविता के पहचाने हुये नाम है . समीक्षक की अन्वेषी दृष्टि से अभियंताओ के साहित्यिक अवदान को रेखांकित किया जाना वांछित है . भोपाल में संतोष चौबे , ने विश्वरंग के माध्यम से अद्भुत कार्य किए हैं। इंस्टीट्यूशन आफ इंजीनियर्स के तत्वावधान में एक राष्ट्रीय अधिवेशन प्रस्तावित है . निरंतरता का साहित्य साधना में बड़ा महत्व होता है . इस भाव से साहित्य के क्षेत्र में सक्रिय इंजीनियर्स ने साहित्य यांत्रिकी का गठन किया है . इसी क्रम में ग्रामीण यांत्रिकी सेवा के पूर्व प्रमुख इंजी प्रियदर्शी खैरा के आवासीय सभागार में एक गोष्ठी संपन्न हुई. वरिष्ठ व्यंग्यकार एवं कवि हरि जोशी की अध्यक्षता में गोष्ठी का प्रारंभ किया इंजी मुकेश मिश्रा ने. ” ये देखकर मेरी जान जलती है ,मेरी नहीं चलती बस उनकी चलती है “रवींद्र नाथ टैगोर विश्वविद्यालय वैशाली के कुलपति व्ही के वर्मा ने अपनी गजल तरन्नुम में पढ़ी … ” हर बात जुबां तक आ जाये यह बात तो मुमकिन कभी नहीं ,हर बात तेरी सुन ली जाये यह बात तो मुमकिन कभी नहीं ” प्रियद्रशी खैरा की बसंत को लेकर पढ़ी गई इन पंक्तियों ने सबका ध्यानाकर्षण किया …” बस अंत आ गया ,सोच कर जियो ,जीवन का हर क्षण ,सोम सा पियो ,जीवन दर्शन मौसम सिखा गया ,लो बसंत आ गया “गायक एवं कवि मंथन शीर्षक से कई पुस्तकों के रचनाकार अशेष श्रीवास्तव ने पढ़ा” मैं सूर्य हूं पर कभी बताया नहींजीवन देता हूं पर जताया नहींअंधकार से कभि घबराया नहींअकेला ही सही डगमगाया नहीं “इंजी अरुण तिवारी प्रेरणा पत्रिका के संपादक हैं . वे राष्ट्रीय स्तर पर पहचाने जाने वाले वरिष्ठ कथाकार हैं . उन्होने गोष्ठी का वातावरण बदलते हुये अपनी कहानी ” मुखौशे ” पढ़ी , जिसकी सभी ने मुक्त कंठ सराहना की .वरिष्ठ कवि सशक्त हस्ताक्षर श्री अजेय श्रीवास्तव ने फरमाईश पर अपनी लोकप्रिय रचना “बाउजी” एवं “अक्षुण्ण ” पढ़ीं . उनकी अकविता की डिलेवरी शैली ने सभी को प्रभावित किया और इन भाव प्रवण रचनाओ ने श्रोताओ की सराहना अर्जित की . विवेक रंजन श्रीवास्तव ने “शब्द तुम्हारे कुछ लेकर के घर लौटें तो अच्छा हो, कवि गोष्ठी से मंथन करते घर लौटें तो अच्छा हो ” रचना पढ़कर गोष्ठी आयोजन का महत्व प्रतिपादित किया .अध्यक्षीय व्यक्तव्य में हरि जोशी जी ने कहा कि अभियंताओ के साहित्यिक अवदान को एक मंच देने का भोपाल में किया जा रहा यह प्रयास राष्ट्रीय स्तर पर सर्वथा प्रथम कदम प्रतीत होता है . इस प्रयास की अनुगूंज हिन्दी के समीक्षा साहित्य में अवश्य होगी . उन्होने छोटी छोटी रचनायें भी पढ़ी.” सिर्फ काम काम अ्वा सोना सोनादोनों का अर्थ होता है जीवन खोनासोना और काम दोनो जरूरीबिना दोनों जिंदगी अधूरी ” विवेक रंजन श्रीवास्तव ने गोष्ठी का अत्यंत कुशलता पूर्वक संचालन किया . अंत में प्रियदर्शी खैरा जी के आभार व्यक्तव्य के साथ नियत समय पर गोष्ठी पूरी हुई . इस अभिनव साहित्यिक आयोजन की भोपाल के साहित्य जगत में भूरि भूरि सराहना हो रही है .