संतों का हो संग,तो जीवन महके सदा।
हर पल बिखरें रंग,हो दुर्गुण की नित विदा।।
संत सजाते ज्ञान, देते हैं नवचेतना।
देते सद् को मान,करते मंगल कामना।।
करो रोज़ सत्संग,तो अंतर पावन रहे।
हो बद् नित बदरंग,निर्मल जल नित ही बहे।।
मिले साधु का साथ,तो मन की बगिया खिले।
सिर पर हो सद् हाथ,तो सब कुछ अच्छा मिले।।
उपदेशों की बात,जीवन को नव सार दे।
संतों की सौगात,हमको जग से तार दे।।
मानुस का अरमान,संत सदा पूरे करे ।
जीवन के अवसान,संतों की वाणी हरे।।
सुनो सदा उपदेश,मिले तेज नव आपको।
हटें सभी ही क्लेश,कर लो भाई जाप को।।
संतों की जयकार,करते सबका जो भला।
वहाँ चहकता सार,जहाँ ज्ञान नित ही पला।।
संतों के संदेश,करते हैं सब कुछ मधुर।
देते नव आदेश,मिलें सुमंगल नेह सुर।।
महिमामय सत्संग,सुख की बिखरे चाँदनी।
करो बुरे से जंग,अंतर्मन हो रोशनी।।
गरिमामय सत्संग, बिखरे आभा ज्ञान की।
पलती सदा उमंग,राहें हों उत्थान की।।
रामायण का पाठ,संतों के मुख से सुनो।
जीवन का हो ठाठ,संत-संग अब तुम चुनो।।
प्रो(डॉ)शरद नारायण खरे,प्राचार्य
शासकीय जे.एम.सी.महिला महाविद्यालय
मंडला,मप्र