मैया का दरबार : ‘मृदुल’

कितना प्यार कितना न्यारा,
मैया का ये दरबार,
तेरी हो रही जय जयकार |

लाल चुनरिया लाल ही फरिया,
लाल तेरा है सिंगार,
तेरी महिमा है अपरंपार |

दम दम दमके तेरी बाली,
उस पर लट काली,
तेरी महिमा है बड़ी प्यारी |

कभी दुर्गा और कभी काली,
रूप धरे विकराल,
तेरा हृदय बहुत विशाल |

भक्तों के मन में है बसती,
तू दुष्टों की काल,
मां करती सबको निहाल |

निर्धन हो चाहे हो धनवान,
करे सबका बेड़ा पार,
मां का सांचा है दरबार |

खड्ग खप्पर मुंडमाल धारी,
करती है सिंह सवारी,
मां लगती है बड़ी प्यारी |

कन्या रूप में आ करके मैया,
भक्तों को दरश देती,
मां अद्भुत है तेरी शक्ति |

जो भी तेरे दर पर आता,
खाली हाथ न जाता,
मां का वो वरदान है पता |

कितना प्यार कितना नारा,
मैया का ये दरबार,.
तेरी हो रही जय जयकार

डॉ. संध्या शुक्ल ‘मृदुल’
मंडला

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