नारी तू हैअपराजिता

8 मार्च/महिला दिवस पर विशेष

हीं कभी तू हारी नारी,कौन कहेगा दुर्बल।
जीवन तेरा खिलता उपवन,है समर्थ तू हर पल।।

नहीं निराशा धारण करना,
बढ़ते ही जाना है
तू क्षत्राणी,बलिदानी तू,
हर युग ने माना है

तूने रची विजयगाथा नित,हारे तुझसे छल-बल।
नहीं कभी तू हारी नारी,कौन कहेगा दुर्बल।।

है सुशील,पर धैर्यमयी तू,
हर संकट से भिड़ती
यदि बाधा पथ में आती तो,
तू नित भारी पड़ती

तू है दुर्गा,तू रणचंडी,पर अंतस है निर्मल।
नहीं कभी तू हारी नारी,कौन कहेगा दुर्बल।।

अंधकार में तू उजियारा,
मायूसी में आशा
तू पर्वत है,तू नदिया है,
नवल विजय-परिभाषा

लक्ष्मीबाई,दुर्गावती तू,सब प्रश्नों का है हल।
नहीं कभी तू हारी नारी,कौन कहेगा दुर्बल।।

अपराजित तू रही सदा ही,
इतिहासों में सज्जित
बड़े वीर और बड़े विजेता,
हुए सदा ही लज्जित

साहस तो तेरा ऐ नारी,है मानो गंगाजल।
नहीं कभी तू हारी नारी,कौन कहेगा दुर्बल।।

प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे
प्राध्यापक इतिहास/प्राचार्य
शासकीय जेएमसी महिला महाविद्यालय
मंडला(मप्र)-481661

प्रमाणित किया जाता है कि प्रस्तुत रचना व अप्रकाशित है -प्रो शरद नारायण खरे

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