नारी के श्रंगार में,चुनरी है अति ख़ूब।
लज्जा है,सम्मान है,आकर्षण की दूब।।
चुनरी में तो है सदा,शील और निज आन।
चुनरी में तो हैं बसे,अनजाने अरमान।।
चुनरी को मानो सदा,मर्यादा का रूप।
जिससे मिलती सभ्यता,नित ही नेहिल धूप।।
चुनरी तो वरदान है,चुनरी है अभिमान।
चुनरी में तो शान है,चुनरी में सम्मान।।
चुनरी तो नारीत्व का,करती है जयगान।
चुनरी तो मृदुराग है,चुनरी है प्रतिमान।।
चुनरी तो तलवार है,चुनरी तो है तीर।
चुनरी ने जन्मे कई,शौर्यपुरुष,अतिवीर।।
चुनरी में तो माँ रहे,बहना-पत्नी रूप।
चुनरी में देवत्व है,सूरज की है धूप।।
चुनरी दुर्बल है नहीं,नहिं चुनरी बलहीन।
चुनरी कमतर नहिं कभी,और नहीं है दीन।।
चुनरी में वह तेज है,कौन सकेगा माप।
चुनरी शीतल है बहुत,चुनरी में है ताप।।
चुनरी है ममतामयी,चुनरी में है प्यार।
चुनरी में आकर बसा,पूरा ही संसार।।
चुनरी में तो धर्म है,जीवन का है मर्म।
चुनरी में तो सत्य है,नित निष्ठामय कर्म।।
चुनरी की हो वंदना,होवे नित्य प्रणाम ।
समझ सको,तो लो समझ,चुनरी के आयाम।
प्रो(डॉ)शरद नारायण खरे,प्राचार्य
शासकीय जगन्नाथ मुन्नालाल चौधरी कन्या स्नातक महाविद्यालय मंडला, मप्र